सफ़र जो शुरू अपने घर से हुआ

सफ़र जो शुरू अपने घर से हुआ
नहीं ख़त्म वो बहर-ओ-बर से हुआ
झुका मैं तो अजमत बढ़ी है मेरी
अजब काम ये मेरे सर से हुआ
ये राहें तो सारी ही सुनसान थी
यहाँ शोर मेरे सफ़र से हुआ
जिसे लोग कहते हैं शहरे-वफ़ा
बहुत दर-ब-दर इस नगर से हुआ
मैं अपनी हदों से गुजरने लगा
बड़ा काम तेरी नजर से हुआ
जो देखी सदी एक संवरती हुई
करिश्मा भी ये लम्हा-भर से हुआ
ये कारे जहाँ "अश्क" रौशन है जो
हमारी लगन से, हुनर से हुआ

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